Monday 24 August 2015

आस्था या छलावा

कुछ वर्ष पूर्व की बात है मुझे एक सुप्रसिद्ध मंदिर जाने का मौका मिला या यूँ कहे की भगवान् की कोई कृपा रही होगी मंदिर के बहुत पहले ही गाडी खड़ी करनी पड़ी तो वहा से पैदल ही निकलना था तो चल पड़े कोई आधा एक किमी दूरी रही होगी चलते चलते रास्ते में बहुत सी दुकाने थी और हर दूकान पर कुछ न कुछ ऐसा था की आपका मन वहा रुकने पर मजबूर हो जाता है सिल्क जैसी हलकी और चमकीली छोटी छोटी  धारियों नें भगवान् भोले से लेकर हनुमान और माँ दुर्गा से लेकर पार्वती वाले सभी लॉकेट मौजूद थे सबके अपने अपने दाम थे कोई 25 तो कोई35 मैंने भी 2 खरीद लिए यहाँ तक सब कुछ ठीक चला धीरे धीरे रास्ते में छोटे मोटे मंदिर आने लगे सब में वहा के पुजारी आपके माथे पर भगवान् श्रीकृष्ण के परम प्रिय मोर पंखो से बनी झाड़ू का झाड़ा देकर कुछ न कुछ दक्षिणा देने के लिए बोलते तो कोई टिका लगाकर चढ़ावा चढ़ाने को कहता।काफी बार तो दिए लेकिन बार बार की इस हरकत से परेशां होकर मैंने भी बंद कर दिया तो इस पर पण्डे कहो या धूर्त पुजारी जिनका बर्ताव देखने लायक बनने लगा दिल को सन्तुष्टी नहीं हुई सोचा कोई बात नहीं। कुछ देर बाद मंदिर के द्वार पहुंचकर भगवान् का जैकारा लगाया और जूते खोलने के काउंटर पर जाकर टोकन प्राप्त किया वहा लिखा था पर जोड़ी 5 रुपये चलो कोई बात नहीं दिया वो भी।प्रसाद के लिए गया तो होड़ मची थी लेने वालो की नहीं देने वालो की आपस में तू तू मैं मैं चल रही थी बस सर फोड़ना ही बाकी रह गया था दूकानदारो का आपस में। बड़ी जद्दोजहद के वहा से प्रसाद लेकर मंदिर के भव्य प्रांगण में शिरकत की।काफी लंबी चौड़ी 3से 4 पंक्तिया सजी हुई थी जिसमें श्रद्धालु खड़े में हम भी हो लिए उसमें। मैं जिसमें खड़ा था वह लाइन थोड़ी नहीं बहुत ज्यादा लंबी थी।बाकी लाइन भी कुछ ऐसे ही थी ।लेकिन लाइन से अपनी गर्दन बहार निकाल कर देखा तो आगे भी कुछ लाइन्स थी जिनमें गिने चुने लोग थे। मैंने वहा जाने की उत्सुकता दिखाई और चल पड़ा तभी रास्ते में जाते हुए मुझे एक भगवा वस्त्र में लिप्त वयक्ति ने पीछे से मेरे कंधे को छुआ और बोला रसीद ....मैंने कहा कोनसी रसीद....
तो बोला इस लाइन में लगने के लिए लाल रंग वाली रसीद ....मैंने कहा नहीं है।क्या इस लाइन के लिए रसीद की जरूरत है तो 
उन्होंने कहा.... हाँ....
और मुझे उस लंबी लाइन में लगने को कहा मैं वहा चला गया।
इस सम्पूर्ण घटनाक्रम को एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने देखा।और मुझे बतलाने लगे की बेटा यहाँ हर लाइन की अलग अलग रसीद मिलती है कोई 50 तो कोई 100 और एक 500 वाली । 500 वाली रसीद से डायरेक्ट अंदर भगवान् के  कक्ष में भेज दिया जाता है और सीधे भगवान  के दर्शन करने को मिलते है उसमें इन्तजार नहीं करना पड़ता । अब मुझे धीरे धीरे सारा दृश्य समझ आ चूका था ।अब आप ही बताये की क्या भगवान् ऐसे अपने भक्तो  को दर्शन देते है।क्या ये परमपिता द्वारा चलाई गयी प्रथा है।मेरी समझ से परे थी। मुझे नहीं लगता ऊपर वाले ने इंसान में फर्क रखा होंगा।धर्म और आस्था के नाम पर इन ठेकेदारो ने इसको धंधा बना दिया।बात केवल वहा तक उचित है जहा तक मंदिर के विकास का विषय है।लेकिन उसके आगे का सच क्या है ???इसके लिए सरकार या कानून व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराना भी क्या सही है या नहीं??
मंदिरो में आजकल यह प्रथा जोर शोर से लागू है।
कमाई के लिए कालाबाज़ारी है या आस्था के नाम पर ठगी ।विचार करने का विषय है। आप वाही करिये जो आपको अच्छा लगता है और मैं वो जो मुझे। बाकी सच मानिये ऊपर वाले की नजर में सब एक समान है।
शुभ संध्या                      जय हिन्द जय भारत
               वन्देमातरम।।।
आपका शुभचिंतक            
कुमार पवन शर्मा।।।।।

Saturday 22 August 2015

शिक्षा

शिक्षा :एक जरूरत
आप हो या मैं या कोई और सब अपनी अपनी सोच रखते है।हम लोगो में से कोई डॉक्टर कोई इंजीनियर और कोई वैज्ञानिक बन जाता है वाही दूसरी और कोई बलात्कारी तो कोई चोर  तो कोई और समाज को कलुषित करने वाला।यह सब परिवर्तन कैसे???। शिक्षा केवल और केवल शिक्षा ही इसका मूल कारण है।किसी को कम मिली तो किसी को ज्यादा और किसी को मिली ही नहीं। जिसको जितना मिला वो वैसे ही बन गया।शिक्षा ही संस्कार है।संस्कारो का पूर्ण आइना है शिक्षा ।चाहे वो घर में मिली हो या स्कुल की चारदीवारी में।इसका अपना महत्व होता है।लेकिन इसका भी अपना ढंग होता है यह हमेशा मानव विकास या समाज सुधार के लिए होनी चाहिए। किसी मशहूर शख्स ने कहा था की शिक्षा शेरनी के उस दूध की तरह है जिसे पीकर कोई भी दहाड़ सकता है।
अब कुछ लोगो का प्रश्न होगा की अच्छी शिक्षा मिलने के बावज़ूद भी कई लोग गलत राह पर चले जाते है तो इसके पीछे बहस करने पर कोई निष्कर्ष नहीं मिलेगा क्योंकि कई कारण हो सकते है।फिर भी अगर सही शिक्षा मिले तो अधिकाँश लोग इस तरीके की मानसिकता का शिकार होने से बच सकते है।समयाभाव के कारण यही खत्म करना पड़ेगा। मिलते है फिर तब तक के लिए ।
जय हिन्द जय भारत।
वन्देमातरम।